Rajani katare

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बंधन जन्मों का भाग -- 13



                  "बंधन जन्मों का" भाग- 13

पिछला भाग:--
लेकिन अभी अंधेरा ही था... पता नहीं कौन है...
क्या करुं बाबू जी को उठाऊँ... कौन हो सकता 
है!! हिम्मत करके दरवाजे के पास जाती है....
कौन है बाहर...? कौन है बाहर...?

अब आगे:--
कौन है बाहर...? दरवाजा पीटे जा रहे हो!!
बोलो तो कुछ.......
अरे मैं हूँ तेरा मैं !! तेरा भाई बच्चू बच्चू.....
जल्दी से भड़ाक से दरवाजा खोली.....
भाई के गले लगके रो पड़ी.... कब तक सम्हालती
अपने आपको... आखिर अंखियों का बांध टूट ही गया.......
क्या अब यहीं खड़े रखेगी भाई को... कि अंदर 
भी चलेगी.....
भैया कोई खबर दबर नहीं... और अचानक....
चल अंदर चल बताता हूँ बाद में.....
आपने कुछ बताया ही नहीं... इतनी सबेरे सबेरे
ऐसे पीट रहे दरवाजा... हम बहुत डर गये....
पता नहीं कौन है बाहर...कुछ बोल भी नहीं रहे....
मेरी बहिन!! इतनी डरपोक कबसे हो गयी...?
भैया आप भी न... आप मुँह हाथ धोलो....
मैं चाय बना कर लाती हूँ......
विमला धीमी आंच पर चाय चढ़ाकर खुद भी नित्यकर्म से निवृत्त होकर आती है....
जब तक चाय बन गयी... आहट सुन कर बाबू
जी भी उठ गये.....
विमला सबको चाय देती है... चाय पीते-पीते
बच्चू बताता है... बहुत परेशान हो गया.... 

मैंने सोचा आप सब को बताऊँगा आप सब भी परेशान हो जाओगे... इसी कारण कुछ नहीं
बताया... आफिस का काम करो... उनके घर
जाकर भी काम करो...नोकर बना कर रख दिया...
फिर मैंने सोचा!! मैं स्वयं का कुछ काम कर लूंगा,
अब मुझे नोकरी नहीं करनी......

बाबू जी बोले कोई बात नहीं बेटा यहीं रहकर
अपना काम करो... परिवार के साथ रहोगे तो
तुम्हें भी अच्छा लगेगा... और विमला को भी
कुछ राहत मिल जायेगी.....

भैया अब में अपना काम करुं... फिर मुझे 
स्कूलभी जाना है... एक काम तो बचा अब!!
बच्चों को स्कूल आप छोड़ देना.....
बाबू जी आप आराम करो जब तक मैं नाश्ता
बना देती हूँ सो नाश्ता करके आप दवाई खा 
लेना......

बच्चू खाना बन गया तुम लोग खा लेना... मैंने टिफिन भी लगा दिया बच्चों का....
अब निश्चिंत हो गयी मैं....जा रही हूँ भैया.....

शाम को आकर फिर अपने काम धाम में लग 
जाती है....खाने से सबसे फुरसत होकर भाई
बहिन दोनों गपियाने लगते हैं.....
भैया अब एक काम करो शादी ब्याह कर लो
सो भाभी मिल जायेगी मुझको.....
न न न कैसी बात कर रही है... मैं शादी वादी
नहीं करने वाला....
मैं तो अपना काम धाम जमाऊं, जिसमें सार है...

बस ऐसे ही समय गुज़रता चला गया..... 
बच्चे भी बड़े हो गये....
बड़ी बेटी रीता कालेज में अंतिम वर्ष में आ 
गयी...बेटा प्रवीण अभी प्रथम वर्ष में था....
छोटी बेटी गुड़िया ग्यारवी की परीक्षा दे रही 
थी.....बच्चू ने शादी नहीं करी... बहिन के लिए 
ही अपना जीवन समर्पित कर दिया......
अभी ठंड भी बहुत पड़ने लगी...बाबू जी की तबियत भी नरम गरम रहने लगी है.....
आज इतना समय हो गया...बाबू जी सोकर 
नहीं उठे... ऐसा तो कभी होता नहीं....
बच्चू देखो तो जरा!! 
बच्चू बोला- बाबू जी सो रहे... अब न उठ 
पाएंगे... ऐ भगवान कैसी विधना रच दी तूने....

क्रमशः--

   कहानीकार-रजनी कटारे
         जबलपुर ( म.प्र.)

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